हमारा कानून
रविवार का दिन था , सुबह की चाय की चुसकियाँ ले रहा
था कि ,
दरवाजे कि घंटी बजी , देखा कि पड़ौसी हाथ में एक कागज
लिए खड़े
थे ।
उनको अंदर बुलाया , इतनी सुबह आने का कारण पूछा , तो
बोले चरित्र प्रमाण –पत्र चाहिये ।
मैंने कहा हम लोग पिछले
पंद्रह साल से पड़ौसी हैं ,
एक क्या दस लीजिये , मगर किसलिये ।
वे बोले , पास पोर्ट बनवाना है ।
हमने कहा वह क्या बात है
, किस देश की यात्रा का
विचार है ।
प्रश्न सुनकर उन्होने कहा
मेरा नहीं , मेरी छः महीने की पौत्री का
चाहिये ।
यह जानते ही हमें दिन
में तारे नज़र आने लगे ,
भला, जो बच्ची माँ का दूध पी रही है
सारे दिन माँ की गोद में
रहती है , उसका चरित्र प्रमाण –पत्र ?
यह बात उनको समझाने का
प्रयास किया , तो
बोले
कल रात पुलिस वाला आया
था ,
यही बात मैंने भी उसे
समझायी परन्तु नहीं माना।
वही कह कर गया है कि पास
पोर्ट के लिये चरित्र प्रमाण –पत्र जरूरी है ।
यह हजम ना होने वाली पुलिस वाले कि दलील जानकर ,
मैंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा,
शायद, इसीलिए देश के कर्णधारों ने बहुत सोच समझकर
आधी रात का समय आजादी के लिये चुना वरना
अपना देश क्या दिन के
समय आजाद होने से मना कर रहा था ।
क्योंकि देश की जनता उस
समय सो रही थी ,
जो आज तक भी सोई हुई ही
है
और हर तकलीफ /बात को
अपना भाग्य मानकर सिर धुन रही है ,
तथा जो उस समय जाग रहे
थे ,वे तबसे जाग ही रहे हैं ।
तथा, लोकतंत्र की बगिया से छांट
छांटकर , हरी हरी चर रहे हैं
और, न्यूटन के गति के प्रथम नियम को
प्रतिपादित कर रहे हैं ।
वैसे तो मुझे पहले ही
संशय था , मगर आज यकीन हो गया है
कि
आप भी मेरी तरह आम आदमी
हैं , तभी चरित्र प्रमाण–पत्र बनवा रहे हैं ।
यदि आप उस रात जग रहे
परिवार के वंशज होते,
बिना आवेदन किये ही संकेत मात्र से, इस दुधमुंही बच्ची का तो क्या,
अपने स्वर्गीय
रिश्तेदारों का भी पास पोर्ट घर बैठे आसानी से बनवा लेते ।